*💁‍♂️👉ग्रीनलैंड की नदियों में ‘पारा’ का उच्च स्तर (High Levels of 'Mercury' in Greenland's Rivers)*📚



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*💥चर्चा में क्यों?*💥


✨हाल के एक शोध के अनुसार, ग्रीनलैंड की हिमचादरों (Greenland ice sheet) से जलापूर्ति होने वाले जल निकायों में पारे (प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली जहरीली धातु) की उच्च सांद्रता पायी गयी है। वैज्ञानिकों ने देखा कि दक्षिण-पश्चिमी ग्रीनलैंड की नदियों में पारा सामग्री चीन की प्रदूषित अंतर्देशीय नदियों के समान थी।


*प्रमुख बिन्दु*


✨शोधकर्ताओं ने बर्फ की चादर से जुड़ी नदियों और जल निकायों से पानी के नमूने एकत्र किए और सामान्य नदियों की तुलना में पारा की मात्रा का लगभग दस गुना पाया।


✨नेचर जियोसाइंस (Nature Geoscience) में प्रकाशित पेपर में कहा गया है कि धातु की बड़ी मात्रा जैव संचय (bioaccumulation) के माध्यम से तटीय खाद्य जाल में प्रवेश कर सकती है और आर्कटिक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकती है। गौरतलब है कि ग्रीनलैंड एक प्रमुख समुद्री खाद्य निर्यातक क्षेत्र है।


*पाये गए पारे का स्तर*


✨नदियों में विशेष रूप से घुले हुए पारे की मात्रा लगभग 1-10 एनजी एल-1 (किसी ओलंपिक स्विमिंग पूल में नमक-कण के आकार के बराबर पारे की मात्रा) पाई गई है।

✨वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड हिमचादरों द्वारा पोषित जल निकायों में पारे का स्तर 150 एनजी एल-1 से अधिक पाया है।

हिमनदों के चूर्ण (हिमनदों की नदियों को दूधिया दिखने वाला तलछट) द्वारा ले जाने वाले पार्टिकुलेट पारा 2000 एनजी एल-1 से अधिक की उच्च सांद्रता में पाए गए थे।


*💥पारे के उच्च स्तर का कारण*💥


✨ग्रीनलैण्ड के नदियों या जल निकायों में पारे का उच्च स्तर किसी उद्योग अथवा अन्य मानवजनित गतिविधियाँ के कारण नहीं है। ग्लेशियरों के पहाडी ढलानों पर नीचे की ओर धीमी गति से विसर्पण करने के दौरान ‘पारा-समृद्ध आधार-शैलों’ (Mercury-rich bedrock) का अपक्षरण होता है और ग्लेशियर के पिघलने पर ये अपक्षरित शैल-कण प्रवाहित होकर जल-निकायों में पहुँच जाते है।

✨शोधकर्ताओं ने भविष्यवाणी की है कि इससे वैश्विक स्तर पर पारा के प्रबंधन के तरीके में बदलाव लाएगा।


*चिंताएँ*


✨अब तक पारे के प्रबंधन के सभी प्रयास इस विचार से आए हैं कि वातावरण में हम जो बढ़ती सांद्रता देख रहे हैं, वह मुख्य रूप से प्रत्यक्ष मानवजनित गतिविधि, जैसे उद्योगों से है। लेकिन ग्लेशियर जैसे जलवायु के प्रति संवेदनशील वातावरण से आने वाला पारा एक ऐसा स्रोत हो सकता है जिसे प्रबंधित करना कहीं अधिक कठिन हो सकता है।

✨पारे की उच्च सांद्रता से जल प्रदूषण में वृद्धि होगी, क्योंकि पृथ्वी लगातार गर्म हो रही है और हिमचादरें और ग्लेशियर पहले से कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं।

पारा इन्सानों पर लंबे समय में असर करने वाला जहरीला धातु है। अन्य जीवों पर भी ये जहरीला है। इसलिए पर्यावरण में पारे की मौजूदगी एक गंभीर मुद्दा है। पर्यावरण में हरेक साल आने वाली पारे की आधी मात्रा ज्वालामुखी फटने से और अन्य भूगर्भीय प्रक्रियाओं से आती है।


*शोध का महत्व*


✨इस प्रकार का निष्कर्ष ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को समझने में एक नया अध्याय खोलेगा।

✨ग्लेशियर संभावित विषात्तफ़ पदार्थों को भी ले जा सकते हैं, वे पानी की गुणवत्ता और तथा जल-धाराओं के समीप रहने वाले समुदायों को प्रभावित करेंगे, ऐसे में इससे गर्म होती दुनिया में क्या परिवर्तन हो सकते है? इससे संबंधित आयामों का खुलासा हो सकता है।

✨शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी की भू-रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं पर इसके प्रभाव को जानने में मदद मिलेगी।


*पारे से संबन्धित मिनामाटा संधि*


✨यह संधि10 अक्टूबर 2013 को हुई। मीनामाटा संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों पर इसके प्रावधान कानूनी रूप से लागू होते हैं।

✨पर्यावरण पर पारे के प्रभावों को लेकर चिंताजनक स्थिति से निपटने के लिए अभी तक 140 से अधिक देशों ने मिनामाटा संधि पर दस्तखत किए हैं। यह संधि पारे के प्रदूषण को रोकने की बात करती है।

✨इस संधि का नाम मीनामाटा जापान के एक शहर के नाम पर पड़ा। टोक्यो से करीब 1000 किलोमीटर दूर स्थित मीनामाटा में वर्ष 1950 के दशक में एक कंपनी से पारे के रिसाव के चलते लोगों को लाइलाज बीमारी हो गई। वर्ष 1956 में वैज्ञानिकों ने इस बीमारी को ‘मीनामाटा’ नाम दिया। इसके बाद से ही दुनिया भर में पारे के इस्तेमाल को रोकने के लिए अभियान छिड़ा।

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